Ganesh Chaturthi
जिस प्रकार से "श्रीमद भागवत गीता "महाभारत ग्रन्थ के 'भीष्मपर्व ' का एक भाग है, उसी तरह श्रीगणेश पुराण के क्रिदाखंड के 138 वे अध्याय से 148 वे अध्याय तक के भाग को "गणेशगीता " कहा जाता है, जिसे स्वयं भगवान गणेश युद्ध के बाद रजा वरेण्य को उपदेश देते है | "गणेशगीता " के 11 अध्यायों में 414 श्लोक है | गणेशगीता सुनते समय राजा वरेण्य अर्जुन की तरह मोहग्रस्त नहीं , बल्कि मुमुक्षु थे |
राजा वरेण्य के भीतर यह पश्चाताप था की स्वयं भगवान् गणेश ने उनके घर जन्म लिया था , पर उन्होंने कुरूप समझकर उन्हें त्याग दिया |जबकि इसी 9 वर्ष के बालक ने सिन्दुरासुर का वध करके पृथिवी को उसके आतंक से मुक्त किया | यह कथा गणेश पुराण में है की भगवान गणेश राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके यहाँ पुत्र के रूप में जन्म लेने का वचन दिया था |
लेकिन बालक का रूप देखकर रानी के डर जाने से राजा वरेण्य ने उन्हें जंगल में छुडवा दिया और पराशर मुनि ने उनका पालन - पोषण किया | गणेश गीता में राजा वरेण्य ने गणेश जी से मोक्ष पाने के लिए योग की शिक्षा देने को कहा तो गणेश जी ने कहा - हे राजा वरेण्य आपको बुद्धि उत्तम निश्चय पर पहुच गयी है | अब मिया आपको योगम्रित से भरे गीत सुनाता हु | ऐसा कहकर गणेश जी ने 'सांख्यसारार्थ' नामक प्रथम अध्याय में योग का उपदेश दिया और शांति का मार्ग बताया |
दुसरे अध्याय कर्मयोग में गणेश जी ने कर्म का उपदेश दिया | ' विज्ञानयोग ' नामक तीसरे अध्याय में उन्होंने अपने अवतार का रहस्य बताया | गणेश गीता के ' बैध्यसन्यासयोग' नाम वाले चौथे अध्याय में योगाभ्यास तथा प्राणायाम से सम्बंधित अनेक महत्वपूर्ण बाते बताई |
' योगवृतिप्रशंसंयोग ' नामक पाचवे अध्याय में योगाभ्यास के अनुकूल - प्रतिकूल बातो की चर्चा की गयी है | छठे अध्याय ' बुद्धियोग ' में गणेश जी कहते है , अपने किसी सत्कर्म के प्रभाव से ही मनुष्य में मुझे ( ईश्वर ) को जानने की इच्छा पैदा होती है | जिसका जैसा भाव होता है, उसके अनुरूप ही उसकी इच्छा पूर्ण करता हु | 'उपसनायोग ' नामक सातवे अध्याय में भक्ति योग का वर्णन है |
'विश्वयोगदर्शंयोग' नमक आठवे अध्याय में गणेश जी ने राजा वरेण्य को अपना विराट रूप दिखाया | नौवे अध्याय में क्षेत्र - क्षेत्रय्ग का ज्ञान तथा सत्व , रज , तम -तीनो गुण का परिचय दिया है | ' उपदेशायोग ' नामक 10 वे अध्याय में दैवी , आसुरी और राक्षशी की प्रवित्तियो के लक्षण बताये है | ' त्रिविध वस्तुविवेक - निरूपणयोग' नामक अंतिम 11 वे अध्याय में कायिक , वाचिक तथा मानसिक भेद से ताप के तीन प्रकार बताये गये है |
गणेश जी के वचन सुनकर राजा वरेण्य राजगद्दी त्यागकर वन में चले गए और योग के सहारे राजा वरेण्य में मोक्ष को प्राप्त कर लिया | यही कारण है की ब्रह्मवैवतरपुराण में स्वयं भगवान कृष्ण मंगलमूर्ति गणेश जी को अपना समतुल्य बनाते है | इस पुराण का बहुत बड़ा भाग 'गणपति खंड ' है , जिसमे भगवान गणेश के शिव - पार्वती के पुत्र के रूप में जन्म कथा तथा उनकी लीलाओ का वर्णन उपलब्ध है |
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